कमल शर्मा (ब्यूरो चीफ )
🌸ज्योतिर्मय माता की कृपा से भारत में सर्वत्र सिद्धि व समृद्धि
💫आर्य समाज की स्थापना दिवस
✨आर्य समाज का सूत्र वाक्य ’’क्रिनवंतो विश्वम आर्यम’’ अर्थात् ब्रह्मांड को महान बनाना
💥नवरात्रि का द्वितीय दिन शक्ति की उपासना का पावन दिन
स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश, 10 अप्रैल। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज माँ दुर्गा का द्वितीय स्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी के पावन दिवस पर प्रार्थना करते हुये कहा कि मां ब्रह्मचारिणी सभी को आन्तरिक शान्ति, सिद्धि और समृद्धि प्रदान कर तपोनिष्ठ बनायें।
आज के ही दिन महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने आर्य समाज की स्थापना भी की थी ताकि सभी को वेदों के अधिकार प्राप्त हो सके; सभी महान और सुसंस्कृत बनंे। साथ ही आर्य समाज का आदर्श वाक्य ‘क्रिनवंतो विश्वम आर्यम’ वेदों से लिया गया हैं, जिसका तात्पर्य है ‘‘ब्रह्मांड को महान बनाना।’’ उन्होंने आर्य समाज की स्थापना हिंदू धर्म के मूल, मूल्यों और मान्यताओं को संरक्षित करने के लिये की थी।
उन्होंने आर्य शब्द की बड़ी ही सुन्दर व्याख्या की है, आर्य अर्थात् ‘‘श्रेष्ठ और प्रगतिशील समाज।’’ आर्य समाज से तात्पर्य श्रेष्ठ और प्रगतिशीलों का समाज, जो भारत की संस्कृति, संस्कारों और मूल्यों के संरक्षण के साथ ही वेदों के अनुकूल आचरण करने का संदेश देता है। आर्यसमाज की आदर्श मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी और योगिराज कृष्ण जी हैं।
स्वामी जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है, जिसमें मानव कल्याण के संदेश समाहित है। इसमें जीवन के प्रति वैज्ञानिक, आध्यात्मिक दृष्टिकोण का अदृभुत समन्वय है। भारतीय वैदिक संस्कृति में वसुधैव कुटुंबकम्, विश्व एक परिवार है का उदार दृष्टिकोण है और आज भी भारतीयों की इसमें गहरी आस्था है। शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों का विकास ही इस संस्कृति का पूर्ण स्वरूप है।
वेद, शान्ति और संस्कृति ही नहीं बल्कि जीवन और जीविका तथा समृद्धि और मुक्ति देने वाले है। ऋग्वेद में वैश्विक कल्याण के लिये बड़ा ही दिव्य मंत्र है ’’लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु।’’
वेदों उल्लेखित मंत्र सर्वे भवन्तु सुखिनः – सब के सुख और कल्याण की कामना। ऊँ संगच्छध्वं संवदध्वं -सौहार्द एवं एकता स्थापित करने वाला दिव्य मंत्र, असतो मा सद्गमय, ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णत्, पूर्ण मुदच्यते, पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवावशिष्यते। ऊँ शान्तिः, शान्तिः शान्तिः। ये दिव्य मंत्र वरदान है मनुष्य जीवन के लिये।
स्वामी जी ने कहा कि भारत की माटी और जल में समाहित इन दिव्य वेद मंत्रों की ध्वनि और नाद। इनके प्रभाव से ही भारत सदियों से पूरे विश्व को शान्ति का संदेश देता आ रहा है। भारत ने वेद से विमान तक प्रगति की और वह प्रगति शान्ति पर आधारित रही है अर्थात हमारे मूल में शान्ति और हमारी प्रगति का आधार भी शान्ति है।