उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ मेले के आयोजन की तैयारियां चरम पर है। बड़ी संख्या में साधु-संतों का आगमन शुरू हो गया है। आनंद अखाड़े के बारे में विस्तार से बताते हुए धर्म सम्राट ब्रह्मऋषि परम पूज्य महंत महेशगिरी जी महाराज ने बताया कि भक्ति और त्याग को आत्मसात करने वाला तपोनिधि श्री पंचायती आनन्द अखाड़ा दशनाम नागा संन्यासी कपिलधारा सारनाथ वाराणसी हरिद्वार ऐसा पहला अखाड़ा है, जिसके आधे से ज्यादा संन्यासी डॉक्टर, इंजीनियर और प्रोफेसर समेत उच्च शिक्षा की डिग्री रखते हैं। अखाड़े में योग्यता के आधार पर संन्यास की दीक्षा दी जाती है। इसमें संस्कृत के विद्वान और आचार्य भी हैं। अखाड़ा 24 दिसंबर को प्रयागराज के लिए प्रस्थान करेगा l बरेली (नाथनगरी)शहर से भी महात्माओं की जमात जुड़ते हुए प्रयागराज को प्रस्थान करेगी l 26 दिसंबर को प्रयागराजमें नगर पेशवाई होगी lउसमें सारे संत महात्मा सम्मिलित होंगे l
अखाड़े संचालन में लगने वाले पदाधिकारियों का चयन चुनाव के जरिए कराया जा रहा है। सभी पदों के लिए हर छह साल में कुंभ और हर 12 साल में महाकुंभ में चुनाव होते हैं। इसके बाद चुने हुए संतों को जिम्मेदारी सौंपी जाती है। आनन्द अखाड़े में शामिल होने के नियम पहले काफी सख्त हुआ करते थे, लेकिन समय के साथ इसमें कुछ छूट दी गई है।
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आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद कहते हैं कि इस अखाड़े में अपराधी और माफिया पैठ नहीं बना सकते। संन्यासी का चयन योग्यता और साक्षात्कार के आधार पर होता है। अखाड़े में शामिल होने से पहले पांच साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी होता है। इसके बाद महापुरुष की उपाधि दी जाती है।
आचार्य कैलाशानंद ने कहा कि महापुरुष अपने गुरु की सेवा करता है। वह गुरु के बर्तन और कपड़े साफ करता है। भोजन बनाने की जिम्मेदारी भी महापुरुष की होती है। गुरु की सेवा के योग्य साबित होने वाले को ही नागा की दीक्षा दी जाती है।