जीवन में किताबें और इन्सान दोनों को पढ़ना सीखना चाहिए महामंडलेश्वर स्वामी शिव प्रेमानन्द महाराज हरिद्वार श्री निजात्म प्रेम धाम तथा श्री निजात आश्रम दिल्ली अन्य आश्रमों के परमा ध्यक्ष परम विभूषित ज्ञान मूर्ति महामंडलेश्वर 1008 स्वामी शिव प्रेमानंद जी महाराज नेअपने श्री मुख से उद्गार व्यक्त करते हुए कहा मनुष्य को जिंदगी में किताबें और इंसान दोनों को पढ़ना सीखना चाहिए क्योंकि किताबों से ज्ञान और इंसान से अनुभव प्राप्त होता है क्योंकि बाहरी ज्ञान के साथ-साथ मनुष्य को अंदर का ज्ञान भी होना अति आवश्यक है किताबें पढ़ने से कोई महान नहीं हो जाता किताबों को पढ़कर उसमें लिखा एक-एक शब्द का बोध कर उसे अपने जीवन में धारण करने से मनुष्य जीवन जीने की कला में और जीवन को जानने में सहायक हो जाता है जिस प्रकार छोटी-छोटी नदियों को कोई समुद्र तक पहुंचाने का मार्ग नहीं बताता इसी प्रकार एक ज्ञानी व्यक्ति को सही मार्ग चुनना सत्य की राह पर चलना कोई और नहीं बताता उसे खुद समाज में रहकर अनुभव से सीखना पड़ता है अनुभव ही मनुष्य को आत्म बोध कराता है और ईश्वर की राह की ओर ले जाता है क्योंकि आदि से लेकर अनादि तक अगर कुछ सत्य है तो सिर्फ जीवन और मृत्यु सत्य है बाकी सब इस सांसारिक मोह माया का जाल है और इस मोह माया के जाल में रहते हुए जो हरि नाम की राह चुन ले भगवान ईश्वर का मार्ग पहचान ले तो मानो वह सत्य की राह पर चल रहा है विचार और व्यवहार हमारे जीवन रूपी बगीचे के वह दो फूल हैं जो हमारे व्यक्तित्व को महका देते हैं जीवन में प्रशंसा और निंदा नहीं हो रही है तो समझ लेना कि उसका जन्म सिर्फ जनगणना में भाग लेने के लिए हुआ है समाज को उसके तजुर्बे व्यक्तित्व ज्ञान का कोई लाभ नहीं मिल रहा है मनुष्य के जीवन में चाहे कष्ट कितने भी क्यों ना हो किंतु उन्हें मुस्कुराते हुए पार करना ही जीवन जीने की एक कला है जो हर इंसान को सीखनी चाहिए क्योंकि यही जीवन है