बड़े ही धूमधाम और हर्षौल्लास से मनाया गया स्वामी महादेवानन्द सरस्वती आश्रम में गीता जयंती वार्षिकोत्सव

कमल शर्मा( हरिहर समाचार)

श्यामपुर कांगड़ी।गाजीवाला स्थित स्वामी देवानन्द सरस्वती आश्रम में परम पूज्य श्री महंत स्वामी महानन्द सरस्वती जी महाराज के पावन सानिध्य में श्री गीता जयंती वार्षिकोत्सव बड़े ही धूमधाम हर्षोल्लास के साथ संत महापुरुषों की गरिमा मय उपस्थिति के बीच मनाया गया इस अवसर पर बोलते हुए श्री महंत महानन्द महाराज ने कहा भगवान की भक्ति मनुष्य अपने मानव जीवन को सार्थक करने के लिये करता है भक्ति कोई धन प्राप्ति का उद्देश्य नहीं सीधे सच्चा आनंद यानी के सच्चिदानंद इस पृथ्वी को चलाने वाले ईश्वर को प्राप्त करने का महा अभियान है परित्याग है भक्ति इस पृथ्वी को इस संसार को चलने वाले भगवान श्री हरि भगवान श्री कृष्ण भगवान श्री भोलेनाथ भगवान श्री संकट मोचन वीर बजरंगबली हनुमान सहित अपने-अपने आराध्य को प्राप्त करने की अनुभूति का महापर्व है l

भक्ति और इस मानव जीवन को सार्थक करने की युक्ति है भक्ति जिसके जीवन में भक्ति बस जाती है वह सांसारिक मोह माया से दूर होकर उस परमपिता परमेश्वर के बताएं मार्ग की और मानव जीवन सार्थक करने के लिये बढ़ा चलता है सतगुरु तारण हार है सतगुरु परम अवतार सतगुरु भक्ति अपार है जो जाने भव पार इस अवसर पर बोलते हुए महंत कमलेश्वराऩन्द सरस्वती महाराज ने कहा जो सांसारिक मोहमाया से परे हो जाता है और जिसके जीवन में भक्ति का उदय हो जाता है वह संत हो जाता है और संत सभी के जीवन को सार्थक करने की परम युक्ति बन जाता है संत महापुरुषों का जीवन समाज को समर्पित होता है संत महापुरुषों द्वारा किये जाने वाले सभी कार्यों में जगत कल्याण की भावना निहित होती है भगवान श्री कृष्ण ने गीता जी में युक्ति में ही मुक्ति बताई है इस अवसर पर उन्होंने बोलते हुए कहा

गीता जयंती वह पावन दिन है जब भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में अर्जुन को “श्रीमद् भगवद्गीता” का दिव्य उपदेश दिया था। यह केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। गीता का संदेश हर युग में मनुष्य को सही दिशा दिखाता है। जब अर्जुन युद्ध के मैदान में भ्रम और दुख से भर गया था, तब कृष्ण ने उसे कर्म, धर्म, भक्ति, ज्ञान और जीवन के सत्य को समझाया। इसी उपदेश के दिन को गीता जयंती के रूप में मनाया जाता है।

गीता हमें सिखाती है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, हमें अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटना चाहिए। योग, समर्पण, कर्म और संतुलन—ये गीता के प्रमुख स्तंभ हैं। कृष्ण बताते हैं कि जो कुछ भी हम करते हैं, उसे निःस्वार्थ भाव से करें। सफलता–असफलता से ऊपर उठकर कर्म करना ही श्रेष्ठ है। गीता यह भी सिखाती है कि मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु उसका अस्थिर मन है, जिसे साध कर जीवन में शांति और स्थिरता पाई जा सकती है।

गीता जयंती हमें यह याद दिलाती है कि आध्यात्मिक ज्ञान सिर्फ मंदिरों या किताबों में नहीं, बल्कि हमारे रोज़मर्रा के जीवन में भी उतना ही ज़रूरी है। आज के तनाव भरे समय में गीता का संदेश पहले से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। यह हमें धैर्य, साहस और विवेक के साथ आगे बढ़ना सिखाती है। गीता का प्रत्येक श्लोक एक दीपक की तरह है, जो अंधकार को दूर करके मार्ग को प्रकाशित करता है।

गीता जयंती का उत्सव मनाते हुए हम यह संकल्प लेते हैं कि हम सत्य, धर्म और अपने कर्तव्यों का पालन करेंगे। मन को शुद्ध रखेंगे, कर्म को श्रेष्ठ बनाएँगे और जीवन में सकारात्मकता को अपनाएँगे। श्रीकृष्ण का संदेश न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत है। गीता जयंती हमें यही याद दिलाती है कि जीवन एक युद्ध है, और उसे जीतने के लिए ज्ञान, कर्म और विश्वास—तीनों का संतुलन सबसे आवश्यक है। इस अवसर पर महंत विष्णु दास महाराज महंत रघुवीर दास महाराज महंत बिहारी शरण महाराज स्वामी अंकित शरण महाराज कोतवाल कमल मुनि महाराज सहित भारी संख्या में संत महापुरुष तथा भक्तजन उपस्थित थे सभी ने आयोजित विशाल भंडारे में भोजन प्रसाद ग्रहण किया

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