पूर्णमासी की रात वह क्षण है जब आकाश अपने सबसे पवित्र रूप में दिखाई देता है: महंत विष्णु दास जी महाराज

पूर्णमासी तन और मन में शीतलता तथा पावनता का उदय कर देती है महंत विष्णु दास महाराज
हरिद्वार श्रवण नाथ नगर हिमालय डिपो वाली गली स्थित श्री गुरुराम सेवक उछाली आश्रम मे पूर्णमासी पर्व के अवसर पर आयोजित भंडारे में भक्तजनों के बीच ज्ञान की वर्षा करते हुए श्री महंत विष्णु दास जी महाराज ने कहा पूर्णमासी की रात वह क्षण है जब आकाश अपने सबसे पवित्र रूप में दिखाई देता है, मानो ब्रह्मांड स्वयं एक उजली चादर ओढ़ कर मनुष्य के जीवन में शांति उतरने का निमंत्रण दे रहा हो। जब पूर्ण चंद्रमा अपनी सौम्य, निर्मल और दूधिया रोशनी धरती पर फैलाता है, तो ऐसा लगता है जैसे प्रकृति किसी मौन ध्यान में बैठ गए संत की तरह सन्नाटे में भी एक गूढ़ संदेश दे रही हो। यह रात मन को भीतर तक छू लेने वाली है—पेड़ों की शाखाएँ चाँदनी से जगमगा उठती हैं, हवा की हल्की फुसफुसाहट में भी एक कोमल पवित्रता घुल जाती है, और दूर तक फैली चंद्रकिरणें मानो हर थके हुए हृदय को सहलाती हुई कहती हैं कि जीवन में चाहे कितना भी अंधेरा हो, उजाला हमेशा अपना रास्ता ढूँढ लेता है। पूर्णमासी की महिमा सिर्फ उजाले की नहीं, बल्कि आत्मा की जागृति की भी है; इस रात का प्रकाश मनुष्य के भीतर सोई शांति को जगाता है, भावनाओं को संतुलित करता है और आंतरिक बाधाओं को धीरे से पिघला देता है। कहा जाता है कि चंद्रमा की पूर्णता हमें याद दिलाती है कि हमारी अपूर्णताओं में भी एक दिव्य सौंदर्य छिपा होता है, और जब समय आता है तो जीवन भी अपनी खोई कलाओं को जोड़कर हमें फिर से पूर्ण बना देता है। इस रात साधना, प्रार्थना, ध्यान और शुभ संकल्प अत्यंत फलदायी माने जाते हैं, क्योंकि वातावरण में ऐसी शीतल ऊर्जा व्याप्त होती है जो मन को हल्का, विचारों को शांत और हृदय को करुणा से भर देती है। पूर्णमासी मानो एक दिव्य संदेश है—कि शांत रहो, थमे नहीं, प्रकाश की ओर बढ़ते रहो, क्योंकि हर कठिनाई के दूसरी ओर एक उजला आसमान हमारा इंतज़ार कर रहा होता है। पूर्णमासी तन और मन दोनों को पावन कर देती है

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