36 वें अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव में 75 देशों से 1400 योगी और 25 देशों से 65 योगाचार्योे की भागीदारी
कमल शर्मा ब्यूरो चीफ हरिद्वार
🌺परमार्थ निकेतन में अंतर्राष्ट्रीय योग महोत्सव के पांचवें दिन डा भगवती सरस्वती जी, प्रसिद्ध योगाचार्य सीन कॉर्न और कुण्डलिनी योग विशेषज्ञ गुरमुख कौर खालसा ने विज़डम टाॅक-ज्ञानवर्द्धक चर्चा में ‘‘युद्ध और दुनिया भर में व्याप्त विभाजन के इस समय में कैसे सद्भाव की स्थापना हो इस पर विशेष उद्बोधन
💫36 वें अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव में 75 देशों से 1400 योगी और 25 देशों से 65 योगाचार्योे की भागीदारी
🌸अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात कलाकार डाफ्ने त्से प्रेम व सद्भाव को समर्पित मंत्रमुग्ध करने वाले संगीत से सभी को प्रसन्न किया
*अंतर्राष्ट्रीय योग महोत्सव का पांचवां दिन आज कई लोगों के मन में उठ रहे युद्ध, विभाजन व हिंसा के एक बड़े सवाल को समर्पित रहा कि कैसे हम दुनिया में शांति, सद्भाव व समाधान ला सकते हैं?
💥आज का दिन युद्ध नहीं योग को किया समर्पित
ऋषिकेश, 12 मार्च। परमार्थ निकेतन में 36 वें अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव के पांचवे दिन के विज़डम टाॅक में वैश्विक चिंतन व चिंता का विषय ‘‘युद्ध और दुनिया भर में व्याप्त विभाजन के इस समय में कैसे सद्भाव की स्थापना हो इस पर विशेषज्ञों ने उद्बोधन दिया।
वर्तमान समय में कई लोगों के मन में रोज यह सवाल उठता है कि चारों ओर युद्ध, विभाजन व हिंसा के इस समय कैसे हम दुनिया में शांति, सद्भाव व समाधान ला सकते हैं? इस विषय पर अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव की निदेशक डा भगवती सरस्वती जी, प्रसिद्ध योगाचार्य सीन कॉर्न और कुण्डलिनी योग विशेषज्ञ गुरमुख कौर खालसा ने विज़डम टाॅक-ज्ञानवर्द्धक चर्चा के माध्यम से इस वैश्विक समस्या के समाधान हेतु शान्ति, प्रेम व सद्भाव का मार्ग दिखाया। इस सत्र को रेडियंट बॉडी योग के संस्थापक, और रिकवरी 2.0 के संस्थापक टॉमी रोजेन ने होस्ट किया।
अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव का आयोजन परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश द्वारा अतुल्य भारत, पर्यटन मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय और आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से किया जा रहा है।
विश्व प्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय योग महोत्सव का पांचवां दिन योग, ध्यान, व्याख्यान और ज्ञानवर्द्धक चर्चा व संगीत की विविध प्रस्तुतियों को समर्पित रहा।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है ‘उदारतापूर्ण व्यवहार’जो हमारी भारतीय संस्कृति का भी मूल है। पुनः उस मूल रूप अर्थात उदारता को अंगीकार करना होगा। भारतीय संस्कृति के जो आधारभूत मूल्य हैं संवेदना, सद्भाव, दया, करूणा, प्रेम, शांति, सहिष्णुता इन मूल्यों का प्रयोग अब वैश्विक स्तर पर करने की जरूरत है।
भगवत-गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने बड़ी ही सुन्दर व्याख्या की है-भौतिकता का तात्पर्य निर्माण, व्यवस्था और फिर विघटन से है। भौतिक जगत व भौतिक प्रकृति में कुछ भी स्थायी नहीं है और न कुछ भी निश्चित है बस यहां सब कुछ बनता है और समय आने पर उसमें अनेक परिवर्तनों के साथ वह विकृत जाता है, इसलिये भौतिक प्रकृति को माया व भ्रम कहा गया है। आज हम इतने भौतिक हो गये हंै कि मानवता खोते जा रहे हैं इसलिये आध्यात्मिक मार्ग को अपनाना होगा। आध्यात्मिक पथ पर चलते हुये भौतिक प्रकृति को जानना, समझना, व्यवहार करना और फिर विकास के पथ पर आगे बढ़ना एक सहिष्णु मार्ग है जिस पर अमल कर शान्त, सतत, सुरक्षित और सार्वभौमिक मानवतावादी संस्कृति की ओर बढ़ सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय योग महोत्सव की निदेशक साध्वी भगवती सरस्वती जी जो विगत कई वर्षों से संयुक्त राष्ट्र सलाहकार परिषद और धर्म व सतत विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी और नैतिक अनिवार्यता की संचालन समितियों में भी कार्य कर रही हैं। साधवीजी ने कहा कि यह समय जागृति का समय है। यह समय हिंसा, भड़काने वाले व तीखे आनॅलाइन पोस्ट व टिप्पणियों का नहीं है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में बड़ा ही प्यारा शब्द है ’’सहनशक्ति’’ ’सहनशक्ति वह शक्ति है जो सहन करने की शक्ति प्रदान करती है, जो परेशान करते हैं उनके साथ बैठने की शक्ति प्रदान करती है। योग की मौलिक शिक्षा भी यही है जो वर्तमान समय में हमारे समुदायों में लुप्त होते दिखायी दे रही है।
“पश्चिम के देशों में सहनशक्ति विगत कुछ समय से बहुत कम दिखायी दे रही है, लेकिन हाल की स्थिति बहुत खराब होती जा रही है। उन्होंने बताया कि मेरे पिता तलाक के मामलों को देखने वाले वकील थे, इसलिए मैने बहुत सारी स्थितियों को पास से देखा है। वह उन जोड़ों को सलाह देते थे, जो शादी करना चाहते थे, कि ‘‘आप या तो सही हो सकते हैं या शादीशुदा हो सकते हैं।’’ वर्तमान समय में एक-दूसरे की परवाह करने के बजाय हम सही होने की परवाह करते हैं इसलिये आपसी प्रेम कम हो रहा है और अलगाव बढ़ते जा रहा है। अलगाव चाहे व्यक्तिगत हो या सामुहिक इसे समाप्त करने के लिये “आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक रूप से,” चितंन करना होगा।
योगाचार्य टॉमी रोसेन ने कहा, ‘वर्तमान समय में चारों ओर दुनिया भय, अविश्वास और विभाजन में विभक्त हो रही है ऐसे में लोग एकजुट होने के बजाय चिंतित हो रहे है परन्तु अध्यात्म में वह शक्ति है; योग में वह शक्ति है कि वे लोगों को भयमुक्त वातावरण प्रदान कर सकती है। जैसा कि साध्वी जी ने कहा कि योग व्यक्ति की सहनशक्ति को मजबूत करता है इसलिये यह हम सभी का कर्तव्य है कि हम योग से सहयोग की ओर बढ़ें।
योगाचार्य आनंद मेहरोत्रा जी ने कहा, वर्तमान समय का सबसे बड़ा संकट यह है कि हम अपनी मानवता, अपनी प्रकृति, अपने मौलिक अस्तित्व से दूर होते जा रहे हैं। “हम अपनी बुद्धिमत्ता को एआई को आउटसोर्स कर रहे हैं और यह केवल इसलिए हो रहा है क्योंकि प्रौद्योगिकियाँ मानव मानस की व्यसनी प्रवृत्तियों पर प्रभाव डाल रही हैं। हमें अपने जीवन में जागरूकता लाने की जरूरत है ताकि हमारी मूल्य प्रणाली सोशल मीडिया के अधीन न हो। मेरे गुरु ने मुझे सिखाया, ‘सही बनने की कोशिश मत करो, बुद्धिमान बनने की कोशिश करो।’
आनंद जी ने आगे कहा, ‘भारतीय संस्कृति की सबसे खूबसूरत चीजों में से एक है विनम्रता की गहरी भावना। अब समय दिल से विनम्र बनने का है; अपनी संस्कृति के लिये आत्मसमर्पण करने का है। यही कारण है कि मुझे अपनी धरती बहुत प्रिय है, यही बात भारत दुनिया को सिखा सकता है।”
प्रसिद्ध योगाचार्य सीन कॉर्न ने अपने विचार साझा करते हुये कहा कि ‘मुझे दो चीजें दी गईं जिन्हें मैंने अपने दिल के पास रखा है “एक तो ’हमारी मुक्ति’ जो हमारी समग्र नैतिक जिम्मेदारी भी है। हममें से कोई भी तब तक स्वतंत्र नहीं है जब तक कि सभी प्राणी स्वतंत्र न हो जाते। दूसरा है ‘अहिंसा’ अर्थात किसी को भी ’नुकसान न पहुंचाना’। हमारी निष्क्रियता भी दूसरों को नुकसान पहुंचा सकती है इसलिये हिंसा के लिये चुप्पी तोड़ना होगा और जवाबदेह और जिम्मेदार बनना होगा।
कुन्डलिनी विशेषज्ञ गुरुमुख जी ने कहा कि लोग अपने लाइक को बढ़ाने के लिये सोशल मीडिया पर भड़काने वाली चीजे भी डाल देते हैं ताकि लाइक बढ़ जाये। मुझे यह समझ में नहीं आता कि “आपके पास 60 लाइक हैं, या 6 मिलियन लाइक हैं, या कोई लाइक नहीं है कौन परवाह करता है। आप उन्हें जानते भी नहीं! उनके लाइक से क्या होगा अगर हम सचमुच प्यार करना और प्यार पाना चाहते है ंतो हिंसा को बढ़ाने वाले संदेशों को महत्व देना बंद करना होगा।
अन्तर्राष्ट्रीय योग महोत्सव के पांचवें दिन के विशेष सत्र –
आज प्रातःकाल वोकल म्यूजिक और वॉयस कल्चर प्रशिक्षक सुधांशु शर्मा, जो पंडित बलदेव राज वर्मा के संरक्षण में गुरु-शिष्य परंपरा में प्रशिक्षित हैं, उन्होंने सूर्योदय वैदिक मंत्रोच्चार किया। स्टीवर्ट गिलक्रिस्ट ने योगासन की कक्षा में माइंड सेट, अर्जुन थीम पर आधारित अष्टांग आसन का नेतृत्व किया। सिमोन गोड और जेम्स कैसिडी ने सेक्रेड साउंड स्टेज पर कीर्तन कॉन्सर्ट का नेतृत्व किया, किआ मिलर ने द इल्यूमिनेटेड माइंड पर कुंडलिनी आसन का नेतृत्व किया। इसके पश्चात प्रतिभागियों ने सीन कॉर्न की रिवोल्यूशन ऑफ द सोल का अनुभव किया।
दोपहर के सत्र में प्रतिभागियों ने साध्वी भगवती सरस्वती जी के साथ एक विशेष सत्संग आध्यात्मिक प्रश्न और उत्तर सत्र में अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किया। इस बीच, वैद्य डॉ. पद्मा नयनी राजू ने अपने व्याख्यान और कार्यशाला, ‘महिला जगत के साथ आयुर्वेद का तालमेल’ में विशेष रूप से महिलाओं को आयुर्वेद क्या प्रदान कर सकता है, इस पर गहराई से अपने विचार व्यक्त किये।
तत्पश्चात सभी प्रतिभागियों ने परमार्थ निकेतन की विख्यात गंगा आरती में सहभाग किया।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात कलाकार डाफ्ने त्से ने योग की भक्ति परंपरा के साथ संगीत की ध्वनियों के अपने विशेष मिश्रण से प्रतिभागियों के दिलों को खुशी से भर दिया।
उन्होंने कहा कि “भक्ति योग सबसे आसान और दिल खोल और उपचार करने का सबसे श्रेष्ठ माध्यम है। भक्ति योग हमें दैवीय शक्ति का आनंद लेने के लिए आमंत्रित करता है और हमें वर्तमान क्षण जीने की शिक्षा देता है।
अहमदाबाद से आये नृत्यावली नृत्य ने गुजरात और राजस्थान की पारंपरिक लोक नृत्य शैलियों पर सांस्कृतिक प्रस्तुति दी।