योग के साथ पर्यावरण योग जरूरी

कमल शर्मा (प्रधान संपादक) हरिद्वार

🌺वैश्विक योगी परिवार को दिया पर्यावरण संरक्षण का संदेश
🌸योगियों को हरित योग के लिये किया प्रेरित
ऋषिकेश, 18 मार्च। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने वैश्विक योगी परिवार को योग के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुये सभी को रूद्राक्ष का पौधा आशीर्वाद स्वरूप दिया।
स्वामी जी ने योग के साथ-साथ पर्यावरण योग हेतु भी प्रेरित किया। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुये कहा कि पर्यावरण ही हमेशा से हमारे अस्तित्व का आधार रहा है। जब मानव का अस्तित्व इस धरा पर नहीं था, वायु, जल, वन, वन्य-जीव आदि प्राकृतिक तत्व तब भी पृथ्वी पर फल-फूल रहे थे अर्थात पर्यावरण से ही हम हैं, हमसे पर्यावरण नहीं है। हमें पर्यावरण की जरूरत हैं, पर्यावरण को हमारी जरूरत नहीं है। बिना हवा, पानी, मिट्टी, वनों और जैव-विविधता के हम लोग अपने अस्तित्व की कल्पना भी नहीं कर सकते।
अथर्ववेद के 12वें अध्याय के प्रथम सूक्त (भूमि सूक्त) की 12वीं ऋचा में उद्धृत किया गय है-’ध्यं पृथिवि यच्च नभ्यं यास्त ऊर्जस्तन्वः संबभूवुः । तासु नो धेह्यभि नः पवसव माता, भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः । पर्जन्यः पिता स उ नः पिपर्तु ॥१२॥ष् अर्थात “हे देवी पृथ्वी, आपके भीतर एक पवित्र ऊर्जा का स्रोत है, हमें उस ऊर्जा से पवित्र करें। हे देवी पृथ्वी, आप हमारी माता हैं और पर्जन्य (वर्षा के देवता अर्थात मेघ) हमारे पिता हैं। आप दोनों ही मिलकर हमारा पोषण करते हैं।’ भारतीय संस्कृति के अनुसार पर्यावरण से मानव का सम्बन्ध माता-पिता व सन्तान के समान है अर्थात मानव का अस्तित्व पर्यावरण पर ही निर्भर है।

स्वामी जी ने कहा कि योग के माध्यम से हरित योग पाठ्यक्रम व कार्यक्रम तैयार करना होगा। अब समय आ गया है कि पर्यावरणीय बदलावों पर चर्चा नहीं बल्कि उन पर अमल करना होगा तथा सभी को मिलकर पर्यावरणीय बेंचमार्क तय करना होगा। अब वह समय आ गया जहां पर हम सोचे कि हम कितना जल, कितनी बिजली या कितना वाहन का उपयोग कर रहे हैं साथ ही हमारे द्वारा कितना कचरा एवं कितना प्रदूषण पैदा हो रहा है? उस फुटप्रिंट के आधार पर अपने पर्यावरण की बेहतरी के लिये कदम बढ़ाना होगा।
पृथ्वी हमारे अस्तित्व का आधार है, जीवन का केंद्र है। यह आज जिस स्थिति में पहुँच गई है, उसे वहाँ पहुँचाने के लिये कहीं न कही हम ही जिम्मेदार हैं। आज सबसे बड़ी समस्या मानव का बढ़ता उपभोग है, लेकिन पृथ्वी केवल उपभोग की वस्तु नहीं है क्योंकि वह हमारे जीवन के साथ-साथ असंख्य वनस्पतियों-जीव-जंतुओं की आश्रयस्थली भी है।
वर्तमान समय में देखे तो चारों ओर प्रकृति का दोहन जारी है इसी दोहन और प्रदूषण के कारण वैश्विक स्तर पर अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन पृथ्वी के लिये सबसे बड़ा संकट का कारण बन गया है। यदि पृथ्वी के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लग जाएगा तो इसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। महात्मा गांधी का एक प्रसिद्ध कथन है “हम दुनिया में जो भी बदलाव लाना चाहते हैं, उसे पहले हमें खुद पर लागू करना चाहिये।“ हमें आज यही करने की जरूरत है। हमारी पर्यावरण संरक्षण की गतिविधियों को कार्यरूप प्रदान करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है इसीलिये बदलाव की दिशा में सबसे पहला कदम यह होना चाहिये कि हम अपने कार्यों के प्रति सचेत और जागरूक हों। हमें बदलावों को आत्मसात करना होगा।

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