🌸परमार्थ निकेतन कांवड मेला चिकित्सा व पर्यावरण जागरूकता शिविर का विधिवत उद्घाटन
💥स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने दीप प्रज्वलित कर हृदय में सेवा का दीप प्रज्वलित करने का दिया संदेश
☘️परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने पपेट के माध्यम से दिया स्वच्छता व सिंगल यूज प्लास्टिक मुक्त कांवड़ मेला का संदेश
✨श्रावण माह शिवत्व के जागरण का माह
स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश, 27 जुलाई। प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी श्रावण माह में परमार्थ निकेतन द्वारा कांवड़ यात्रियों के लिये चिकित्सा व पर्यावरण जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया हैं। गुरूपूर्णिमा के पावन दिन से बाघखाला, राजाजी नेशनल पार्क में शिविर का आयोजन किया गया हैं। साथ ही स्वर्गाश्रम से लेकर बैराज तक 12 जल मन्दिरों की स्थापना कर कांवड़ियों को शुद्धपेय जल उपलब्ध कराया जा रहा हैं।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने दीप प्रज्वलित कर कांवड मेला चिकित्सा व जागरूकता शिविर का विधिवत उद्घाटन किया। इस अवसर पर परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने पपेट शो के माध्यम से वे किस प्रकार कांवडियों को पर्यावरण संरक्षण, नदियों को प्रदूषण मुक्त करने तथा सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने का संदेश देते हैं इस का भी अद्भुत प्रदर्शन किया।
श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने कहा कि सावन माह में प्रकृति का सौंदर्य चरम पर होता हैं। प्रकृति, प्रसन्नता से चहकती हैं; नदियाँ अपने पूरे वेग से प्रवाहित होती हैं और कलकल का नाद करती हैं, पौधों व पेड़ों में नवअंकुर निकलते हैं उसी प्रकार हमारे हृदय व जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार और आत्मिक शक्ति का विस्तार भी इसी माह में सर्वाधिक होता हैं।
उन्होंने कहा कि श्रावण माह ही नहीं बल्कि हर घड़ी और हर क्षण भगवान शिव का ही है परन्तु श्रावण माह की महिमा अपरम्पार हैं। इस माह में मेघ अपना नाद सुनाते हैं, प्रकृति का अपना राग उत्पन्न होता है और मानव में आध्यात्मिक ऊर्जा का स्फुरण होता है। श्रावण मास में साधक अपने अंतर्मन का नाद सुनने के लिये है वनों में और शिवालयों में जाकर साधना करते हैं, कांवड़ यात्रा उसी का प्रतीक हैं। श्रावण माह में ध्यान, साधना, जप व ब्रह्मचर्य का पालन कर शिवत्व को प्राप्त कर सकते हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि कांवड़ यात्रा भगवान शिव की आराधना का प्रतीक हैं। शिवलिंग पर जलाभिषेक कर प्रभु के प्रति विश्वास, भक्ति, आस्था और मजबूत होती हैं। श्रावण मास में भगवान शिव के भक्त कांवड़ यात्रा कर भगवान महादेव को गंगाजल अर्पित करते हैं। सुदूर स्थानों से आकर नीलकंठ महादेव का जलभिषेक कर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने गांव व शहरों को वापस लौटते हैं। शिवालय और शिवलिंग पर गंगा जल अर्पित करते हैं। यह कांवड यात्रा जल संचय और जल की अहमियत को दर्शाती हैं। गर्मी के चार माह के पश्चात श्रावण माह में प्रकृति के साथ सुदूर स्थानों पर विराजमान भगवान शिव के मन्दिरों, शिवालयों और शिवलिंगों पर जल अर्पित कर जल के महत्व को दर्शाया गया हैं। जल संचय प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने हेतु अत्यंत अवश्यक हैं। उत्तराखंड के प्राकृतिक सौंदर्य को बनाए रखने के लिए जल संचय, पौधा रोपण और सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बंद करना होगा। कांवड यात्रा, जल संरक्षण के महत्व को बढ़ावा देने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सकारात्मक संदेश भी देती हैं।
ऋषिकुमारों द्वारा प्रदर्शित पपेट शो देखकर श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने उनकी भूरि-भरि प्रसंशा की।