हरिद्वार, 9 सितंबर ‘भक्तमाल की कथा’ के आज तृतीय दिन परम पूज्य श्री श्री सुधा दीदी ने अपने श्रीमुख से कथा को आगे विस्तार देते हुए भक्तों को प्रभुभक्ति से अवगत करते हुए कहा कि इसमें चारों युगों के भक्तों का वर्णन हैं l
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ध्रुव, प्रहलाद, द्वादश प्रधान भक्त सूर, कबीर, तुलसी, मीरा, ताजदेवी आदि अनेकों भक्तो की माला ही भक्तमाल है । भगवान् की कथा भक्त सुनते हैं, तो भक्तों की कथा स्वयं भगवान् सुनते हैं ।
चाह जर से लगी, जरा हो गई l
जी हरि से लगा, हरा हो गया ll
चाह हमको उसकी हरदम चाहिए l
वह अगर चाहे तो फिर क्या चाहिए लल
भगवान् अपने से अधिक भक्तों को आदर देते हैं । भगवान् अपने भक्तों तथा सन्तो के हैं । श्रीमद्भागवत महापुराण में “अहं भक्त पराधीनः” कहकर भगवान् ने स्वयं भक्तों के आधीन होने की बात स्वीकारी है तथा गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है – “मोते संत अधिक कर लेखा” । भगवान् स्वयं कह रहे हैं कि मुझसे भी अधिक मेरे सन्तों की महिमा हैं ।
ज्ञान, कर्म व भक्ति एवं इनके विभिन्न रसों में भीगे हुए भक्तों ने किस प्रकार इस भवसागर को सहजता से पार किया तथा भगवान् को अपने प्रेम पाश में बाँध लिया, इसको समझने का साधन है श्रीभक्तमाल ।
कथा के समापन के अवसर पर संजय शर्मा, तुषार शर्मा, प्राची शर्मा, अभय शर्मा, लकी शर्मा, रितिक शर्मा, इंद्र कुमार शर्मा,मिश्रा जी, कमल शर्मा,सुधा गुप्ता, स्वाति जी, कन्नू,प्रीति गुप्ता, अंशिका गुप्ता, कृष्णा गुप्ता अमुख भक्तों ने उपस्थित रहकर कथा का आनंद एवं प्रसाद ग्रहण किया l