कमल शर्मा (हरिहर समाचार)
भारत सेवाश्रम संघ में आचार्य श्रीमत् स्वामी प्रणवानन्दजी महाराज के 130वां प्राकट्य उत्सव एवं अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर कथा व्यास श्रीश्री पूज्या कृष्णा किशोरी देवी जी के श्रीमुख से संगीतमय श्रीराम कथा का आयोजन दिनांक- 23 अप्रैल 2025 से 29 अप्रैल 2025 तक समय- सायं 3 बजे से 7 बजे तक निरन्तर प्रवाहित हो रहा है राम कथा के दूसरे दिन कथा प्रवक्ता पूज्या कृष्णा किशोरी जी ने मां ब्रह्मचारिणी का स्मरण कर शिव बारात की कथा सुनाई। कहा कि नारद को जैसे ही पता लगा कि राजा हिमांचल के घर पार्वती का जन्म हुआ है.तो वह राजा के पास पहुंच गए।
नारद ने जगत जननी को प्रणाम किया। इसके बाद राजा को बता दिया था कि पार्वती तपस्या करें तो भगवान शंकर प्राप्त हो सकते हैं। राजा चाहते थे कि बेटी के जीवन में कोई कष्ट नहीं आए, सो वह बेटी की उम्र का वास्ता देकर नारद को मनाने लगे। नारद ने पार्वती के सती होने की कथा रानी मैना को सुनाई कि दक्ष को शिव से सती का विवाह पसंद नहीं था, सती राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं और वे भगवान शिव की परम भक्त थीं। दक्ष को शिव को एक योगी और त्यागी मानते हुए उनका आदर नहीं था l

दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया और सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन शिव और सती को नहीं बुलाया गया l
सती ने यज्ञ स्थल पर जाने का निर्णय लिया, भले ही उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया हो lजब सती यज्ञ स्थल पर पहुंचीं, तो दक्ष ने शिव का अपमान किया, जिससे सती दुखी हो गईं। अपने पति का अपमान सहन न कर पाने से, सती ने यज्ञ कुंड में कूदकर अपनी देह का अंत कर दिया जब शिव को सती के त्याग की खबर मिली, तो वे क्रोधित हो गए और यज्ञ स्थल पर गए, जहां उन्होंने यज्ञ का विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काट दिया l सती ने पार्वती के रूप में हिमालय की पुत्री के रूप में दूसरा जन्म लिया, यह कथा प्रेम, कर्तव्य, अहंकार, और क्रोध के बीच संघर्ष को दर्शाती है। यह शिव और सती के अमर प्रेम की कहानी है और यह देवी सती के त्याग और समर्पण का प्रतीक है।
आगे बताते हुए कृष्ण किशोरी जी ने लडडू गोपाल को लडडू गोपाल क्यो कहते हैं कि कथा सुनाई कि श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप लडडू गोपाल से एक कहानी जुड़ी हुई है। एक पौराणिक कहानी है कि ब्रज की भूमि पर श्रीकृष्ण के परम भक्त कुम्भनदास रहते थे। कुम्भनदास हमेशा ही ठाकुर जी की भक्ति में लीन रहते थे। कुम्भनदास का एक बेटा था रघुनंदन। रघुनंदन बहुत ही सरल और भोला था। एक दिन कुम्भनदास को एक नगर में प्रभु श्रीकृष्ण का कीर्तन करने का बुलावा आया। कुम्भनदास पहले तो अपनी श्रीकृष्ण की भक्ति को छोड़कर नहीं जाना चाहते थे लेकिन फिर लोगों के समझाने-बुझाने पर कुम्भनदास मान गए और कीर्तन करने के लिए चले गए। जाते-जाते कुम्भनदास ने अपने बेटे रघुनंदन को जिम्मेदारी सौंपी कि वे रोजाना श्रीकृष्ण को भोग लगाने के बाद ही भोजन करे। कुम्भनदास के चले जाने के बाद रघुनंदन ने खाने से भरी थाली श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने रख दी
रामकथा का आयोजन मुख्य यजमान श्री राजकुमार राठौड़ एवं श्रीमती सपना राठौड़ पिछोर शिवपुरी जिला मध्य प्रदेश वालो ने शादी की 25 वीं वर्षगाठ के उपलक्ष्य में रामकथा एवं दिनांक 23 अप्रैल 2025 भण्डारा का आयोजन भी किया जिसमें उनका पूरा परिवार जैसे नरेश सिंह राठौड़ श्रीमती शकुन राठौड़ , श्री राजेश सिंह राठौड़ बड़े भाई श्री महेश सिंह राठौड़ छोटे भाई एवीएन आदि उपस्थित रहे l