कमल शर्मा
होली का पर्व आज भी परंपराओं को संजोकर उसी तरह रखे हुए है, जैसे एक धागे में अलग-अलग मोतियों को पिरोया जाता है. इन मोतियों की माला को जब तैयार किया जाता है तो यह किसी की शोभा बढ़ाती हैं. उसी तरह होली के मौके पर अलग-अलग हिस्से में मनाई जाने वाली होली उत्तर प्रदेश को इसी माला की तरह एक सूत्र में पिरोकर रखने का काम करती हैं
भारत एक ऐसा देश है, जहां पग-पग संस्कृति और परंपराएं बदलती जाती हैं. उत्तर प्रदेश संस्कृति और परंपराओं का गढ़ माना जाता है और जब बात रंगों के पर्व होली की हो तो उत्तर प्रदेश के बरेली जिले की होली का रंग अपने ही रंग में रंगा नजर आता है. हर गली मोहल्ला रंगो से नहाया दिखाई देता है l

बृहस्पतिवार को एतिहासिक राम बरात निकाली गई तो पूरे शहर में होली का उल्लास छा गया। सुबह करीब 10 बजे बमनपुरी स्थित नृसिंह मंदिर में पूजा-पाठ के बाद राम बरात का विधिवत शुभारंभ हुआ। प्रभु श्रीराम, सीता, लक्ष्मण व हनुमान जी के स्वरूप 164 साल पुराने लकड़ी के रथ पर सवार हुए। इस रथ को भव्य रूप से सजाया गया। नृसिंह मंदिर से जैसे राम बरात का मुख्य रथ निकला तो शहरवासी बराती बनकर झूम उठे। रंग-गुलाल के साथ पुष्प वर्षा होने लगी।

दूसरे दिन रंग-गुलाल उड़ाकर बाकी शहरों की तरह होली मनाई जाती है तो दूसरे दिन रंग गुलाल के साथ ही कपड़ा फाड़ होली मनाने की परंपरा है. इसमें सड़क पर होलियारों की भीड़ निकलती है और वह किसी का भी कपड़ा फाड़ देते हैं. हालांकि, इस होली की खूबसूरती यह है कि कपड़ा फाड़ने पर कोई नाराज नहीं होता. और सामूहिक रूप से ठंडई पीने की भी परंपरा है, यानी सड़कों पर लोगों के लिए ठंडई की व्यवस्था की जाती हैl