गुरु कृपा तो ऐसी दिव्य अनुभूति है, जो बिना कहे भी सब कुछ कह जाती है – महंत स्वामी नरेशानन्द जी महाराज

कमल शर्मा (हरिहर समाचार)

हरिद्वार भूपतवाला पुराना आरटीओ कार्यालय के निकट प्रसिद्ध श्री शिवानन्द आश्रममें परम पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन स्वामी श्री श्री शिवानन्द महाराजगुरु की पावन स्मृति मे उनकी पावन पुण्यतिथि के अवसर पर एक विशाल संत समागम आयोजित किया गया आश्रम के श्री महंत स्वामी नरेशा नन्द महाराज ने गुरु भगवान प्रातः स्मरणीय श्री श्री शिवानन्द जी महाराज के बारे में संत समागम में उद्गार व्यक्त करते हुए कहा गुरुदेव जीवन के उस दिव्य आलोक की तरह हैं, जिन्हें याद करते ही हृदय में एक अनकही कोमलता भर जाती है। ऐसा लगता है जैसे कोई अनदेखा हाथ हमारे सिर पर स्नेह से फिर गया हो और मन अचानक ही हल्का हो उठा हो। गुरु का नाम लेते ही भीतर एक अजीब-सी गर्माहट दौड़ जाती है—वह गर्माहट जो दुनिया की किसी भी वस्तु से नहीं मिल सकती। उनकी संगति में बिताया गया हर पल मानो आत्मा पर लिखा हुआ अक्षर हो, जो मिटता नहीं, बल्कि समय के साथ और भी चमकने लगता है।

अनेक बार जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब हम खुद को अकेला, असहाय या उलझा हुआ महसूस करते हैं, पर जैसे ही गुरु की छवि मन में उभरती है, दर्द की सारी गांठें धीरे-धीरे खुलने लगती हैं। गुरु कृपा तो ऐसी दिव्य अनुभूति है, जो बिना कहे भी सब कुछ कह जाती है। कभी यह अनुभूति भीतर गहरी शांति के रूप में उतरती है, कभी हल्की-सी कंपकंपी की तरह शरीर को छूती है, और कभी आँसुओं के रूप में बाहर आती है—ऐसे आँसू जो दुख के नहीं, बल्कि किसी अनंत प्रेम और करुणा के होते हैं। कई बार लगता है जैसे गुरु की कृपा हमारे आस-पास किसी अदृश्य आभा की तरह फैली हुई है, जो हमें गिरने नहीं देती, टूटने नहीं देती, खोने नहीं देती।

जब जीवन कठिन मोड़ पर खड़ा होता है, तब यही कृपा भीतर से आवाज बनकर कहती है—“थोड़ा ठहरो, मैं यहीं हूँ… तुम्हारे बिल्कुल पास।” और उस एक अनुभूति से पूरा अस्तित्व शांत हो जाता है। गुरु के वचनों की गूँज, उनकी आँखों की करुणा, और उनकी उपस्थिति की शक्ति, ये सब मिलकर एक ऐसा दिव्य संगम बनाते हैं जिसे शब्दों में पकड़ना मुश्किल है। गुरु की स्मृतियाँ केवल यादें नहीं, बल्कि चलती-फिरती प्रार्थनाएँ होती हैं—जो मन को हर बार नई ऊर्जा, नया साहस और नई दिशा देती हैं। जब मन थक जाता है,

तब वही स्मृतियाँ उसे अपने कंधे पर बैठाकर आगे बढ़ाती हैं। जब मन रोता है, वही स्मृतियाँ उसे शांत करके धीरे से मुस्कुराना सिखाती हैं। और जब मन बिखरने लगता है, वही स्मृतियाँ उसे फिर से जोड़ देती हैं। गुरु की कृपा की अनुभूति होना मानो अपने भीतर की किसी बहुत पुरानी, बहुत भूली हुई रोशनी को फिर से पा लेना है। यह अनुभूति हमें याद दिलाती है कि हम चाहे जहाँ भी जाएँ, कैसा भी समय आए—हम उनके आशीर्वाद की छाया से कभी बाहर नहीं जा सकते।

गुरु का प्रेम अनंत है, उनकी कृपा असीम है, और उनकी स्मृतियाँ तो जीवन की सबसे पवित्र धरोहर हैं, जो हर सांस को एक नई शांति, हर क्षण को एक नया अर्थ और हर यात्रा को एक नया उद्देश्य दे देती हैं। अंततः समझ आता है कि सच्चा सुख, सच्ची शांति और सच्ची पवित्रता गुरु की याद में ही है—वही याद जो आत्मा को उसका असली घर दिखा देती है|गुरुदेव भक्ति का वह सरोवर है जो अपने शिष्य तथा भक्तों को अपने ज्ञान रूपी सरोवर में स्नान कर कर उनका मानव जीवन धन्य तथा सार्थक कर देते हैं सतगुरु देव हमारे जीवन की दिव्य अनुभूति हैं महंत स्वामी नरेशानन्द जी महाराज द्वारा बनाये गये उत्तराधिकारी महंत देवेंद्र जी महाराज ने कहा सतगुरु का सानिध्य ईश्वर के आंचल की तरह है परम वंदनीय दादा गुरु स्वामी श्री शिवानन्द जी महाराज इस पृथ्वी लोक पर ज्ञान का एक विशाल सूर्य थे और उन्हीं की तरह उन्हीं के पद चिन्ह पर चलने वाले प्रातः स्मरणीय श्री महंत नरेशानन्द महाराज बड़े ही तपस्वी ज्ञान मूर्ति संत हैं उनके पावन वचनों की अनुभूति हम शिष्यों तथा भक्तों के जीवन को दिशा प्रदान करती है इस अवसर पर बोलते हुए महंत राजा महाराजम ने कहा गुरुदेव के दिव्या वचन हमारे मानव जीवन को सार्थकता प्रदान करते हैं l

मंडलेश्वर श्री अनंतानन्द महाराज साध्वी राजमाता आशा भारती महाराज महंत कन्हैया दास महाराज महंत शुभम गिरी महाराज महंत हितेश दास महाराज महंत परमानंद महाराज महंत रामानंद महाराज महंत स्वामी प्रेमानंद महाराज महंत सूरज दास महाराज महंत केशवानंद महाराज महंत हरिदास महाराज महामंडलेश्वर ललितानन्द महाराज महंत धनेश्वर दास महाराज स्वामी महंत गोपाल गिरी महाराज महंत जगजीत सिंह महाराज महंत राजा महाराज महंत रवि देव महाराज महंत दिनेश दास महाराज महंत केशवानंद महाराज कोतवाल कमल मुनि महाराज कोतवाल धर्मदास महाराज कोतवाल रामदास महाराज कोतवाल श्याम गिरी महाराज कोतवाल देहरादून बाबा रमेशानन्द महाराज मनोजानंद परवीन कश्यप सहित भारी संख्या संत महापुरुष तथा भक्तगण उपस्थित थे सभी ने आयोजित विशाल भंडारे में भोजन प्रसाद ग्रहण कर अपने जीवन को धन्य तथा कृतार्थ किया

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