ऋषिकेश, मयाकुण्ड, श्रीभरत मिलाप आश्रम में दिनांक 27/03/2024 से चलरही श्रीमद्भागवत कथा में आज दिनांक 02/04/2024 को कथा का विश्राम दिवस था। आज की कथा में मुख्य रूप से भगवान् दत्तात्रेय के 24 गुरुओं की कथा, भगवान श्रीकृष्ण की लीला का संवरण, शुकदेव जी का राजा परीक्षित् को अन्तिम उपदेश, ऋषिवर मारकण्डेय जी को माया का दर्शन और श्रीभागवत की महिमा आदि रहे।
कथा व्यास आचार्य नारायण दास जी ने दत्तात्रेय जी के द्वारा राजा यदु को जो अपने उन 24 गुरुओं को बताया, जिनके स्वभाव और विचार से शिक्षा लेकर, उन्होंने अपने ज्ञान-विज्ञान और वैराग्य को परिपुष्ट किया। मुख्य रूप से पञ्चतत्वों में पृथ्वी को गुरु क्यों बनाया, इस पर प्रकाश डालते हुए दत्रात्रेय जी ने कहा कि पृथ्वी से मैंने धैर्य और परोपकार सीखा है क्योंकि सारी वनस्पतियाँ, नदियाँ, वृक्ष, फल-फूलादि पृथ्वी से ही उत्पन्न होते हैं जिनका उपभोग पृथ्वी नहीं करती है। अतः साधुपुरुष को भी परोपकारी जीवन व्यतीत करना चाहिए।
वायु से मैंने असंगता सीखी है। वायु सर्वत्र परिव्याप्त होती है किन्तु कभी एकस्थान पर नहीं रहती है। वायु के सदृश ही साधु को विचरण करते रहना चाहिए।
आकाश को क्यों गुरु बनाया? इस विषय में स्पष्ट करते हुए कहते हैं, जिस प्रकार आकाश सर्वव्यापक, निर्मल, अलिप्त और सर्वत्र है, उसी प्रकार साधुपुरुष को भी संसार में सानन्द भ्रमण करते हुए, निष्काम भाव से सबके कल्याण का चिन्तन करते रहना चाहिए।दत्रात्रेय जी, कहते हैं मैंने जल से शीतलता और मधुरता सीखी है। अग्नि से तेजस्विता सीखी है। चन्द्र से सीखा है, वह न घटता है न बढ़ता है, अपितु उसकी कलाएँ घटती-बढ़ती रहती हैं। अर्थात् साधुपुरुष किसी भी प्रकार ऐश्वर्य पाकर हर्षित और न मिलने पर दुःखित ही होना चाहिए। सूर्य से मैंने परोपकार सीखा है। भगवान सूर्य का प्रकाश निर्धन-धनी, जल-थल और शिष्ट-दुष्ट के ऊपर समान रूप से पड़ता है, इसी प्रकार साधुपुरुष का समस्त ज्ञान-विज्ञान समान रूप से सबके लिए है।
आचार्य नारायण दास जी शुकदेव जी के द्वारा जो राजा परीक्षित् अन्तिम उपदेश दिया, उसके सार का विवेचन करते हुए कहा, जिसकी जीवन की गति-मति एक मात्र परामात्म होते हैं, उसे मृत्यु का भय नहीं सताता है। हे राजन्! तुम ही ब्रह्म हो , तुम्हारे अन्दर ही सारा ज्ञान-विज्ञान परिव्याप्त है। निर्भय हो जाओ। काल तुम्हारा कुछ नहीं कर सकेगा। ऐसा ही हुआ जब तक्षक नाग राजा को डसने आया, उसे पहले वह शरीर छोड़कर मुक्त हो चुके थे।
श्रीमदभागवतमहापुराण की महिमा का वर्णन करते हुए आचार्य जी बताया जो भी श्रीमद्भागवत की कथा को सुनता है या सुनाता वह निश्चित ही संसार के माया मोह से परे होकर, भगवत्प्राप्ति की अनुभूति कर लेता है।
आज की कथा में परमवैष्णव सन्त गुरुवर्य श्रद्धेय श्याम चरण जी, सन्त राकेश दास, सन्त गणेशदास जी, कथा यजमान डाॅ० आदित्य नारायण पाण्डेय, डाॅ सरोज पाण्डेय, रामायणी जी , मौनी बाबा जी, पं गोविन्द प्रसाद जी, प्रशान्त अग्नि होत्री, आयुष नोटियाल, दीपांशु जोशी, वंश डंगवाल, राकेश शर्मा, दुर्गेश चमोली मनोज तिवारी आदि रहे।
आज श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ विराम हुआ। हवन पूजन के बाद भण्डारा प्रसाद का आयोजन किया गया। कथा को सुनकर सभी महनीय सन्त और भक्त बहुत प्रसन्न थे। सन्तों-भक्तों ने श्रीमद्भागवत की कथा के कथानकों और उनके दृष्टान्तों को मानवीय मानबिन्दुओं का सम्पोषण करने वाला बताया।