संस्कृत के माध्यम से वैदिक और आधुनिक ज्ञान का संगम भविष्य के लिए है अत्यंत महत्वपूर्ण

कमल शर्मा
दिनांक 16 सितंबर 2024
संस्कृत भारती की अखिल भारतीय गोष्ठी के द्वितीय दिवस का समापन सत्र सफलतापूर्वक आयोजित हुआ। समापन सत्र से पूर्व तीन महत्वपूर्ण सत्रों का आयोजन किया गया, जिनमें विभिन्न कार्य विभागों, आयामों और प्रकल्पों से संबंधित विषयों पर विस्तृत चर्चा हुई। इन सत्रों का मुख्य उद्देश्य था कि अब तक संस्कृत भारती के विभिन्न विभागों द्वारा उनके मूल उद्देश्यों के अनुरूप किस प्रकार के कार्य किए गए हैं और आने वाले समय में गुणवत्ता की दृष्टि से किस प्रकार के नए नवाचार किए जा सकते हैं। इन सत्रों में उपस्थित सभी अधिकारियों और सदस्यों ने गम्भीरता पूर्वक विचार-विमर्श किया।

    प्रथम सत्र में संस्कृत भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष प्रोफेसर गोपबंधु मिश्र, महामंत्री सत्य नारायण भट्ट और प्रचार प्रमुख श्रीश देव पुजारी ने गहन चर्चा की। उन्होंने संस्कृत भारती के विभिन्न विभागों से संबंधित विषयों पर गंभीरता पूर्वक विचार करते हुए सुझाव दिए। इस सत्र के अंत में अखिल भारतीय संगठन मंत्री दिनेश कामत ने अखिल भारतीय और विभिन्न प्रांतों में संस्कृत भारती के कार्यों को और अधिक गति देने के लिये नए पदाधिकारियों की घोषणा की ।जिनमें अखिल भारतीय पदाधिकारी के रुप में जय प्रकाश गौतम को  संघटन मंत्री , दत्तात्रेय को सह संघटन मंत्री , दिनेश कामत  को उपाध्यक्ष,श्रीराम  को प्रशिक्षण प्रमुख, शिरीष को गीता शिक्षण प्रमुख, सचिन कठाले को प्रचार प्रमुख,प्रो० लक्ष्मी निवास पाण्डेय को विद्वत्त- परिषद प्रमुख के साथ प्रांतीय स्तर पर डा० हरीश चंद्र गुरुरानी को पश्चिम प्रांत मंत्री, प्रोफ़ेसर दिनेशचन्द्र शास्त्री को प्रांत अध्यक्ष, डॉ० वेदव्रत को प्रांत सहमंत्री और जानकी त्रिपाठी को प्रांत सदस्य समिति के नवीन दायित्व की घोषणा संगठन में नई ऊर्जा और जिम्मेदारी का संचार करने के उद्देश्य से की गई।

     द्वितीय सत्र में विभागों, आयामों और प्रकल्पों से संबंधित विचार गोष्ठी का आयोजन हुआ। इस सत्र में यह चर्चा की गई कि संस्कृत भारती द्वारा किए जा रहे कार्यों की गुणवत्ता को और अधिक कैसे बढ़ाया जा सकता है। विद्वानों ने इस विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए कि संस्कृत भाषा को आधुनिक संदर्भ में कैसे और अधिक प्रासंगिक बनाया जा सकता है, ताकि इसे युवा पीढ़ी के बीच लोकप्रियता मिल सके।

इस संगोष्ठी को संस्कृत भाषा के विकास और प्रसार के लिए एक अहम मंच के रूप में देखा जा रहा है। यहां विद्वान यह विचार कर रहे हैं कि संस्कृत भाषा को आधुनिक ज्ञान विज्ञान और तकनीक से कैसे जोड़ा जा सकता है। विद्वानों ने इस बात पर जोर दिया कि वैदिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का संगम संस्कृत भाषा के माध्यम से संभव है। संस्कृत साहित्य, वेद, उपनिषद और पुराणों की विभिन्न विधाओं पर गहन चर्चा की गई और यह निष्कर्ष निकाला गया कि संस्कृत भाषा न केवल प्राचीन धरोहर है, बल्कि यह साहित्य से लेकर चिकित्सा तक हर क्षेत्र में आज भी प्रासंगिक है और भी प्रासंगिक बनी रहेगी।


कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य संस्कृत भाषा को आधुनिक संदर्भ में और भी अधिक प्रासंगिक बनाना था। विद्वानों ने संस्कृत को वैश्विक भाषा के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह भाषा आधुनिक पीढ़ी के लिए भी अत्यंत उपयोगी है और इसे विज्ञान, तकनीक और शिक्षा के अन्य क्षेत्रों से भी जोड़ने की अत्यंत आवश्यकता है।संस्कृत के माध्यम से वैदिक और आधुनिक ज्ञान का संगम भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साबित होगा ।


इस कार्यक्रम में संस्कृत के विकास और प्रसार से संबंधित कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई, जिसमें यह देखा गया कि किस प्रकार संस्कृत को न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अधिक से अधिक उपयोग किया जा सकता है। इस आयोजन ने यह साबित किया कि संस्कृत भाषा की समृद्धि और उसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि प्राचीन काल में थी।


अंत में, इस बात पर सहमति बनी कि संस्कृत भाषा के प्रचार और प्रसार के लिए निरंतर प्रयास आवश्यक हैं और इसे एक आधुनिक भाषा के रूप में विकसित करना आज की प्रमुख आवश्यकता है।

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