भक्तप्रह्लाद जैसी दृढ़ भक्ति जिसके जीवन में होती है, उसकी रक्षा के लिए भगवान सदा आतुर और व्याकुल रहते हैं।

ऋषिकेश के माया कुंड भरत मिलाप आश्रम में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस की कथा में आज मुख्यरूप से भक्त प्रह्लाद, गजेन्द्र मोक्ष, समुद्र मन्थन, भगवद्भक्ति भूषण राजा अम्बरीश एवं भगवान् श्रीराम की कथा और भगवान कृष्ण के जन्म तक की कथाएँ सानन्द सम्पन्न हुईं।
कथा व्यास आचार्य नारायण दास जी ने उपदेशित किया कि भक्तप्रह्लाद जैसी दृढ़ भक्ति जिसके जीवन में होती है, उसकी रक्षा के लिए भगवान सदा आतुर और व्याकुल रहते हैं। कितनी भी विषमताएँ अथवा प्रतिकूलताएँ हमारे जीवन में आएँ फिर भी हमें सत्य और भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ना चाहिए।
स्त्रीधर्म पर प्रकाश डालते हुए आचार्य प्रवर ने कहा- स्त्री परिवार की धुरी है, जिसके सदाचार से परिवार में सुख, शान्ति और समृद्धि का वातावरण निर्मित होता है। मन,वचन और कर्म से पति की सेवा ही स्त्रियों का परमधर्म है। मर्यादित जीवनचर्या ही नारियों का बहुमूल्य आभूषण है।

आचार्य जी ने कथा प्रसंगानुसार कहा, भाव-अद्वैत, क्रिया-अद्वैत और द्वव्य-अद्वैत पर अप‌ने विचार अभिव्यक्त करते हुए कहा, विचारों में एक रूपता ही भावाद्वैत है एवं कार्य-व्यवहार में सबका कल्याण सोंचना और परोपकार करने की पवित्रभावना ही क्रियाद्वैत है। धनादि के सञ्चय से सबका कल्याण करना ही द्रव्याद्वैत संज्ञक है। देव-दनुज ने अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया, सबसे पहले हलाहल विष निकला; सबकी रक्षा और कल्याण हेतु भगवान शिव ने उसका पान कर, उसे अपने कण्ठ में स्थित रखा, इसलिए उनका एक नाम नील कण्ठ भी हुआ । इस कथा से यह ज्ञान मिलता है, समाज सुखी और शान्तिमय जीवन जिए, जो कटुता या विषमता रूपी विष है उसे लोककल्याण की दृष्टि से यथा शक्ति उसका शमन करने के लिए हमें प्रयत्नशील होना चाहिए । सत्पुरुषों का यह सहज स्वभाव होता है कि वह स्वयं कष्ट सहकर भी दूसरों के हितों की रक्षा करते हैं।।
वामन अवतार की कथा पर प्रवचन करते हुए आचार्य जी कहा- मनुष्य के जीवन में सुख-दुःख एवं अनुकूलता और प्रतिकूलता का खेल चलता रहता है, किन्तु उसे उनसे घबड़ाकर अपना धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए तथा कभी भी अभिमान में आकर मानवीय मानबिन्दुओं की अवहेलना नहीं करनी चाहिएl

राजा बलि ने इन्द्रसान को प्राप्त कर लिया था किन्तु देखते-देखते सब छिन गया। श्रीमद्भागवत में वर्णित कथाएँ जीवन के सत्य को प्रकाशित करती हैं।
आचार्य जी ने राजा अम्बरीश जी की भक्ति-भावना से ओत-प्रोत कथा के माध्यम से यह संदेश दिया कि सामार्थ्यवान व्यक्ति को कभी भी सत्पुरुषों और दीन-दुःखियों को स्वार्थ या अहंकार के वशीभूत होकर सताना या अपमानित नहीं करना चाहिए, अन्यथा इसका फल उल्टा हो जाता है। सताने वाला स्वयं विपत्तियों से घिर जाता है।
आज कथा में भगवान श्रीराम की संक्षिप्त कथा भागवत जी के अनुसार वर्णित की गयी तथा भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के पश्चात् नन्दोत्सव पर विराम हुआ।
भक्तों श्रीकृष्ण जन्म के उपलक्ष्य की में झाँकी निकाली तथा बधाई गीत गाए। प्रसाद में सभी भक्तों को मक्खन-मिश्री का वितरण किया गया। आज की कथा में ऋषिकेश वैष्णव सन्त मण्डल के अध्यक्ष महामण्डलेश्वर परमपूज्य श्रद्धेय दयाराम दास महाभाग अपने शिष्यों के साथ पधारे, हरिद्वार-गुरुधाम से परमपूज्य वयोवृद्ध वैष्णव सन्त गुरुवर्यश्री श्याम चरण दास जी, माता साध्वी जी, साधुसेवी पं० श्री रवि शास्त्री जी, लखनऊ से रोहित मिश्र जी, मनोज तिवारी, मुम्बई से डाॅ चेतन कोठारी जी, हरिद्वार से मनीष और सुरभि, राकेश शर्मा, राजेश, रोमानिया (विदेश) से क्रिस्टीना, पं गोविन्द जी मिश्र, डाॅ० आदित्य कुमार पाण्डेय, डाॅ० श्रीमती सरोज पाण्डेय, गोपाल पाण्डेय, दुर्गेश चमोली, वंश, दीपांशु जोशी, आयुष नोटियाल आदि उपस्थित रहे।

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