भगवान दत्तात्रेय की जयंती धूमधाम से मनाई गई।
हरिद्वार
जूना अखाड़ा के संरक्षक व अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत हरि गिरि महाराज, जूना अखाड़ा के वरिष्ठ अध्यक्ष महंत प्रेम गिरि महाराज एवं अध्यक्ष महंत मोहन भारती के निर्देश पर गुरुवार को देशभर में स्थित जूना अखाड़े के सभी मठ ,मंदिरों, प्रमुख आश्रमों में भगवान दत्तात्रेय की जयंती धूमधाम व श्रद्धाभाव से मनाई गई। जूना अखाड़ा हरिद्वार में वरिष्ठ सभापति महंत प्रेम गिरि महाराज, महामंत्री महंत महेश पुरी महाराज महंत आदित्य गिरी ,कोठारी, भीष्म गिरी ,महंत अमृत पुरी,महंत रणधीर गिरी आदि के संयोजन में भगवान दत्तात्रेय की जयंती पर विशेष पूजा-अर्चना की गई और भोग लगाया गया। दूधेश्वर नाथ मठ महादेव मंदिर के पीठाधीश्वर, जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता एवं दिल्ली संत मंडल के अध्यक्ष महंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि सभी स्थानों पर भगवान दत्तात्रेय के चरणों में नमन करते हुए भक्तों पर सदैव कृपा बनाए रखने की प्रार्थना की गई। महंत हरि गिरि महाराज ने कहा कि ज्ञानियों के ज्ञानी, गुरुओं के गुरु भगवान दत्तात्रेय साक्षात त्रिदेव — ब्रह्मा, विष्णु व महेश का ही स्वरूप हैं। भगवान दत्तात्रेय के त्रिदेव स्वरूप के कारण ही उनकी पूजा-अर्चना विभिन्न स्थानों पर विविध विधियों से की जाती है। उनकी पूजा में जहाँ बेलपत्र चढ़ाया जाता है, वहीं तुलसी पत्र का भी विशेष महत्व माना गया है। उन्होंने कहा भारत के प्रमुख दत्तात्रेय तीर्थस्थल • माहुरगढ़ (ज़िला नांदेड़, महाराष्ट्र) , भगवान दत्तात्रेय का जन्मस्थान माना जाता है, आबू पर्वत (गुरु शिखर, राजस्थान) यहां भगवान दत्तात्रेय के पावन पदचिह्नों की पूजा होती है। गिरनार पर्वत (जूनागढ़, गुजरात) लगभग 10,000 सीढ़ियाँ चढ़कर दत्तात्रेय मंदिर तक पहुंचा जाता है यहीं भगवान दत्तात्रेय ने तपस्या की थी और यहां उनकी चरण पादुकाएँ विराजमान हैं। उत्तराखंड में अनसूया मंडल तीर्थ में दत्तात्रेय, महर्षि अत्रि और देवी अनुसूया पर्वत रूप में पूजनीय हैं। उन्होंने कहा महाराष्ट्र में भगवान को ज्वार-बाजरे, गिरनार में हलवा तथा जूना अखाड़े में चूरमा का भोग लगाया जाता है। इन सभी तीर्थ स्थान पर भगवान दत्तात्रेय का साक्षात निवास माना जाता है।
